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जॉर्ज सोरोस (George Soros) कौन है? 90 वर्ष की उम्र में भी भारत की बर्बादी क्यों चाहता है?

लगभग 90 वर्ष की उम्र में कोई व्यक्ति क्या करता है? काम धंधा छोड़ छोड़कर ईश्वर की भक्ति में समय लगाता है. नाती पोतों के साथ खुश रहने का प्रयास करता है. या फिर कुछ ऐसा करता है की लोग उसे एक अच्छे इन्सान के तौर पर याद करें. सनातन धर्म के अनुसार यह आयु वानप्रस्थ की आयु होती है. जब मनुष्य लोभ, मोह और ईर्ष्या छोड़कर अपना परलोक सुधारने और सदगति प्राप्त करने की इच्छा रखता है. आप इस चेहरे को देखिये

who is behind almost every anti-national activities in India?
George Soros’ real face

उम्र लगभग 90 बर्ष, एक पाँव कब्र में है लेकिन इसका सपना है भारत और इसकी सभ्यता को नष्ट करना. भारत ही नहीं जॉर्ज सोरोस (George Soros) का सपना है, हर उस देश को तबाह करना जहां पर मानवता के लिए कुछ भी अच्छा हो रहा हो. जॉर्ज सोरोस के पास अरबों डॉलर की संपति है. जिसके दम पर वो अब तक दुनिया के कई देशों को बर्बादी के रास्ते पर ले जा चुका है.

लेकिन इतने समय बाद भी बहुत लोग उसका नाम नही जानते. कई देशों को तो पता भी नहीं है की उनकी बर्बादी के पीछे इसी व्यक्ति का हाथ है. जॉर्ज सोरोस के आसुरी अभियान के बारे में हम आपको आगे बताएँगे. लेकिन पहले जान लेते हैं ये हैं कौन??

कौन है George Soros ?

जॉर्ज सोरोस अमेरिका का रहने वाला है. 12 अगस्त 1930 को उसका जन्म हंगरी में हुआ. वैसे तो ये खुद को इन्वेस्टर और समाजसेवी बताता है. मार्च 2021 में इसकी निजी संपति 8.6 अरब अमेरिकी डॉलर आकीं गई थी. जॉर्ज सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (George Soros open society) नाम की एक संस्था चलाता है. दुनिया भर में विध्वंसकारी गतिबिधियाँ इसी संस्था की आड़ में चलती है. जॉर्ज सोरोस ने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन को 32 अरब डॉलर दिये. इसमें से 15 अरब डॉलर दुनिया भर में खर्च भी किये जा चुके हैं. जॉर्ज सोरोस ने ये सारा पैसा शेयर बाजारों में निवेश करके कमाया है.

वर्ष 1992 में यह पहली बार चर्चाओं में आया था. जब उसने बैंक ऑफ़ इंग्लैंड के शेयर अचानक बेचने शुरू कर दिए थे. जिससे बैंक की हालत ख़राब हो गई. जॉर्ज सोरोस एक पूंजीपति है लेकिन वो दुनिया के वामपंथियों को बहुत प्रिय है. वह राष्ट्रवादी विचारधारा को पसंद नही करता.

जॉर्ज सोरोस का सबसे ताजा शिकार

जॉर्ज सोरोस का सबसे ताजा शिकार डोनाल्ड ट्रम्प को माना जाता है. ट्रम्प जब तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे, मीडिया उनको लेकर नए नए झूठ छापता रहा. ट्रम्प को पुरे विश्व में खलनायक बना दिया गया. जबकि उनके शासनकाल में अमेरिका की अर्थ व्यवस्था सबसे अच्छे दौर पर पहुँच गयी थी. ट्रम्प के कार्यकाल में अमेरिकी सेना ने विश्व में किसी भी देश से युद्ध शुरू नही किया. फिर भी उनकी ऐसी छबि बनाई गयी जैसे वो कोई सनकी तानाशाह हों. इस सारे खेल में जॉर्ज सोरोस के फंडिंग की बड़ी भूमिका मानी जाती है.

जॉर्ज सोरोस का अगला निशाना किस पर?

डोनाल्ड ट्रम्प के बाद जार्ज सोरोस के निशाने पर भारत के प्रधानमंत्री और विश्व में सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी हैं. जॉर्ज सोरोस को लगता है भारत विध्वंस के मिशन में नरेन्द्र मोदी सबसे बड़े रुकावट हैं. इसीलिए सबसे पहले नरेन्द्र मोदी को राजनैतिक तरीके से ख़तम किया जाना चाहिए. ये बात स्वयं जॉर्ज सोरोस खुल के बोलता रहा है. जनवरी 2020 में स्विट्ज़रलैंड के दावोस में हुए वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में उसने CAA NRC को लेकर झूठा बयान भी दिया था .

George Soros false narrative on CAA NRC

यदि आप ये सोचतें है की जॉर्ज सोरोस की बात सिर्फ एक बंदर घुड़की है तो आप गलत हैं. उसने भारत में जो युद्ध छेड़ रखा है उसकी गंभीरता का भारत में भी बहुत लोगों का अनुमान तक नहीं है यहां तक कि केंद्र सरकार के कई महत्वपूर्ण लोगों को भी नहीं. भारत के सुदूर कोने की कोई खबर देखते ही न्यू यॉर्क टाइम और वॉशिंगटन पोस्ट में ऐसे ही खबर नहीं छप जाती है बस शर्त यह होती है कि उस इस समाचार से भारत की छवि खराब होती हो.

सोरोस भारत विरोधी अभियान कब से कर रहा है?

जॉर्ज सोरोस ने भारत विरोधी अभियान हाल फिलहाल में शुरू नहीं किया वह इस काम में वर्ष 2010 के पहले ही जुट गया था. 2009 में वह बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद मानो उसको पूरी छूट मिल गई हो.

ओपन सोसायटी फाउंडेशन ने भारत में करोड़ों रुपए का निवेश अलग-अलग रास्तों से किया. इन पैसों की सहायता से ढेरों सामाजिक संस्थाएं यानी एनजीओ खड़े किये गये.
तब भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी कोई रोकने टोकने वाला नहीं था भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, पर्यावरण, मानवाधिकार, महिला स्वतंत्रता जैसे मुद्दों के आड़ में बने इन एनजीओ से वामपंथी विचारधारा वाले सरकारी अफ़सरों, जजों, यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसरों और पत्रकारों को जोड़ा गया.

सोरोस के लिए भारत में जयचंद कौन है?

आज ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता, वकीलों और पत्रकारों की फ़ौज तैयार हो चुकी है. जिनको माना जाता है की ये सब जॉर्ज सोरोस की कठपुतलियाँ हैं. इनमें कुछ बड़े नाम हैं जैसे HRLN (Human Rights Law Network), Centre for POLICY RESEARCH, Association of Democratic Reforms जैसी कंपनियाँ हैं. अमर्त्यसेन, इंदिरा जयसिंह, हर्ष मंदर और प्रताप भानु मेहता जैसे लोग हैं. इसी लिस्ट में फ्रांस का शेरपा नाम का एक एनजीओ भी है. जिसने राफेल लड़ाकू विमान सौदे को रुकवाने के लिए पूरी ताकत झोक दी थी.

एक तरफ भारत के अदालतों में राफेल के सौदे को लेकर झूठे आरोप लगाये गये. दूसरी तरफ शेरपा ने फ्रांस में कई सारे याचिकाएं डाल रखी थी.
भारत में आये दिन जो विचित्र विचित्र तरह की याचिकाएं दायर होती रहतीं हैं. उन सब के पीछे भी जॉर्ज सोरोस की बड़ी भूमिका मानी जा रही है. कोई भी छोटा मोटा एनजीओ उठता है, और सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हो जाता है.

अक्सर उनके पास कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वकील होते हैं. ये जाँच का विषय है की इतने महंगे वकोलों की फीस कहाँ से आती है?

सोरोस का ट्विटर कनेक्शन

ओपन सोसाइटी फाउंडेशन पर आरोप है की उसने ट्विटर जैसे कंपनियों में भी भारी निवेश किया है. उसकी का असर है की ट्विटर की नीतियाँ भारत विरोधी है. जॉर्ज सोरोस कितना बड़ा खतरा है इस बात को आप ऐसे समझ सकते हैं की उसके जन्म के देश हंगरी ने ही उसे अपना शत्रु यानि Enemy of the state घोषित किया है. सोरोस ने ऐसे ही कई सारे एनजीओ को पैदा कर हंगरी को अस्थिर करने का प्रयास किया था.

मध्य और पूर्वी यूरोप के लगभग सारे देशों ने सोरोस से जुड़े एनजीओ पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून बना रखें हैं. 2014-15 में यूक्रेन में हुए सरकारी विरोधी हिंसक प्रदर्शनों में जॉर्ज सोरोस की भूमिका पाई गयी थी.

उसने एंटी करप्शन एक्शन या AntAC नाम से एक एनजीओ खड़ा किया. और उसमे करोड़ों डॉलर भेजवाये. यूक्रेन सरकार को गिराने के लिए इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्रों में पैसा बांटा गया था.

जॉर्ज सोरोस के ऐसे शैतानी हरकतों के ऐसे ढेरों उदहारण हैं. कहते हैं किसी देश में अचानक असामान्य रूप से ढेरों एनजीओ रजिस्टर होने लगे तो समझ जाना चाहिए की उस पर जॉर्ज सोरोस की कुदृष्टि पड़ चुकी है.

जॉर्ज किसकी सहायता लेता है?

जहाँ जैसे जरूरत होती है वो इसाई मिशनरीयोँ और इसाई कट्टरपंथियों की भी सहायता लेता है. आज जॉर्ज सोरोस और उसके पैसों पर पल रहे लोग देश में नासूर बने हैं. ये देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं. ये लोग भारत के लोकतंत्र में दखलंदाजी कर रहे हैं. ये सब कुछ इतने चालाकी के साथ हो रहा है की इन्हें वर्तमान नियमों और कानूनों के तहत पकड़ना बहुत ही कठिन है.

जॉर्ज सोरोस जैसों खतरों के लिए काफी हद तक भारत के सरकारें भी दोषी रहीं हैं. वर्ष 1991 में, आर्थिक उधारीकरण आरम्भ होने के साथ ही आशंका जतायी गयी थी की आगे चलकर ईस्ट इंडिया जैसी कंपनियाँ विदेशी शक्ति भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप का प्रयास भी कर सकती है. इससे बचाव के उपायों को लेकर सरकारों ने कभी कोई गंभीरता नही दिखायी.

वर्ष 2014 में, नरेन्द्र मोदी सरकार का इस दिशा में थोडा बहुत काम हुआ है, लेकिन ये अब भी अपर्याप्त है.
समय आ चुका है की भारत में जॉर्ज सोरोस और उसके सहयोगियों की पहचान की जाये. और उनके साथ वही वर्ताव किया जाये जो किसी शत्रु के साथ किया जाता है.

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