जुर्मरेप

भारत का सबसे बड़ा बलात्कार कांड 200 से ज्यादा लड़कियों के साथ, कैसे दबा दिया गया

सबसे बड़ा बलात्कार कांड : राजस्थान में अजमेर का सोफिया गर्ल्स कॉलेज, देश में सबसे नामी स्कूलों में एक. सोफिया गर्ल्स कॉलेज में बड़े बड़े लोगों की लड़कियाँ पढने आती थी. राजस्थान के कई IAS और IPS की बेटियाँ यहीं पर पढ़ती थी.

कैसे शुरू हुआ बलात्कार कांड

शहर में रहने वाले एक लड़के ने स्कूल की एक 9वीं कक्षा की एक लड़की से दोस्ती कर ली. छुट्टी के बाद वो छात्रा लड़के के साथ जाने लगी. लड़के ने छात्रा की किसी तरह अश्लील फोटो खीच ली. उसके बाद जो कुछ हुआ वो देश में अपराध के इतिहास में काले अध्याय की तरह दर्ज है. लेकिन आज भी देश में एक अपराध के बारें में बहुत कम लोगों को पता है.

ये घटना है 1992 की, इसे अजमेर रेप स्कैंडल (Ajmer Rape Scandal) के नाम से जाना जाता है. सोफिया गर्ल्स कॉलेज (Sofia Girls College) छात्रा से दोस्ती करने वाले लड़के का नाम था फारुख चिश्ती (Farukh Chishti) . उसका परिवार ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह पर ख़ादिम (मुसलमानों में दरगाह का अधिकारी या रक्षक) का काम करता था. फारुख चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष भी था.

हालत क्या हो गये थे

एक पत्रकार संतोष गुप्ता बताते हैं की वह अपने दफ्तर में बैठे रहते थे. वहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता था, जो अचानक से ही बढ़ गया था. लोग लड़की की तस्वीर लेकर आते और पूछते थे- “क्या ये वही लड़की है?” दरअसल, वो ऐसे लोग होते थे, जिनकी शादी होने वाली होती थी और वो पहले ही इस बात की पुष्टि करना चाहते थे कि कहीं उनकी होने वाली पत्नी बलात्कार की शिकार तो नहीं।

ओमेंद्र भारद्वाज तब अजमेर के डीआईजी थे, जो बाद में राजस्थान के डीजीपी भी बने। वो कहते हैं कि आरोपित वित्तीय रूप से इतने प्रभावशाली थे और सामाजिक रूप से ऐसी पहुँच रखते थे कि पीड़िताओं को बयान देने के लिए प्रेरित करना पुलिस के लिए एक चुनौती बन गया था।

कैसे आगे बढ़ा दरगाह कांड

छात्रा को प्रेम जाल में फ़साने के बाद फारुख ने उसकी अश्लील तस्वीरें ले ली और छात्रा को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. पहले छात्रा का यौन शोषण होता रहा फिर उसे कॉलेज की दूसरी लड़कियों को लाने के लिए कहा गया. एक के बाद एक लड़कियाँ इस जाल में फसती गयीं. इज्जत बचाने के लिए वो अपने साथ दूसरी लड़कियों को अपने साथ लाती गयीं. कुछ से तो उनकी भाभी और बहनों को भी लाने को कहा गया था.

पहले एक लड़की फिर दूसरी और फिर तीसरी, बहुत जल्दी इस जाल में 200 से अधिक हिन्दू लड़कियाँ इस जाल में फँस गयी थी. ये लड़कियाँ किसी मजदुर और गरीबों के घर की नहीं बल्कि राजस्थान के सबसे अमीर घरानों की थी. यह सब कुछ होता रहा और किसी भी लड़की के घरवालों को भनक तक नहीं लगी.

nasim and anwar with 11std student of sofia college
Ajmer Sharif Rape Case : Image of Farooq Chisty(1), Nasim Chisty and Anwar Chisty with 11std student(2) and muder of Navjyoti news paper editor(3)

यह मात्र संयोग नही था की सिर्फ हिन्दू लड़कियों को ही निशाना बनाया गया. मुस्लिम लड़कियों को छुआ तक नही गया. जिन लड़कियों से बलात्कार हुआ उनमे से अधिकांश 10वीं और 12वीं क्लास में पढ़ती थीं. मास्टरमाइंड फारुख चिश्ती अकेला नही था. उसके साथ ख्वाज़ा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से जुड़ा पूरा एक गिरोह सक्रिय था. उसके मुख्य सहयोगी थे – नफ़ीस चिश्ती और अनवर चिश्ती.ये दोनों भी युवा कांग्रेस के नेता थे.

अजमेर दरगाह कांड को किसका संरक्षण मिला था

बहुत संगठित ढंग से उनका गिरोह अपना काम करता रहा. मजहबी और कांग्रेसी संरक्षण मिला हुआ था तो वैसे भी डरने की कोई बात नही थी. अजमेर के ही एक फार्म हाउस पर यह काम बड़े आराम से चलता रहा. लड़कियों को लेने के लिए गाड़ी जाती थी और साथ में उन्हें घर तक गाड़ी से छोड़ा जाता था. बलात्कार के समय उनकी फ़ोटो खीच ली जाती थी ताकि वो किसी के आगे मुँह खोलने की हिम्मत ना कर सके.

उस समय आज की तरह डिजिटल कैमरे नही होते थे. तब के कैमरे के रील धुलने जिस स्टूडियो में जाती थी वह भी मुसलमान का था. स्टूडियो वाला भी अलग से कॉपी निकल कर लड़कियों का यौन शोषण किया करता था. ये ब्लैकमेलर्स अपने तो बलात्कार करते ही साथ ही अपने दोस्त यारों को भी उपकृत करते.

इस कांड का पोल कैसे खुला

जिन लड़कियों के साथ बलात्कार और ब्लैकमेलिंग हुई, उन लड़कियों ने एक एक करके आत्महत्या करनी शुरू कर दीं. एक ही कॉलेज की छात्राओं का इस तरह आत्महत्या करना ही मामले की पोल खुलने का कारण बना.

शुरू में पुलिस ने 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया. समाज में बदनामी के डर से अधिकांश लड़कियों के परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से भी मना कर दिया. जो 12 लड़कियाँ हिम्मत करके पुलिस के पास गयीं. उनमे से भी 10 बाद में पीछे हट गयीं. क्योंकि आरोपी उन्हें धमकियाँ दिलवा रहे थे. बाकि बची 2 लड़कियों ने ही केस को आगे बढाया. उन्होंने अकेले 16 आरोपियों की पहचान की. यह वो दौर था जब बलात्कार जैसे अपराधों में कड़ी सजा नही होती थी.

घटना के 6 महीने बाद न्यायालय ने 8 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनायी. लेकिन मुख्य आरोपी फारुख चिश्ती ने खुद को मानसिक रोगी घोषित करवा लिया. जिससे की मुकदमे की सुनवाई लटक गयी. जिन आरोपियों को उम्र कैद की सजा को 10 साल की जेल में बदल दिया गया.

कांग्रेस ने कैसे सपोर्ट किया

एक फ़रार आरोपी सलीम नफ़ीस 19 वर्ष बाद साल 2012 में पकड़ा गया. बाद में वह भी जमानत पर छुट गया. जब इस बलात्कार कांड का भंडाफोड़ हुआ तब राजस्थान में कांग्रेस का पूरा सिस्टम आरोपियों को बचाने में जुट गया. जो भी सामने आता उसे डरा धमका कर चुप करा दिया जाता. कहा गया आरोपियों पे कार्यवाही हुई तो साम्प्रदायिक मामला ख़राब हो जायेगा. बलात्कारी मुसलमान थे इसलिए मोमबत्ती गैंग भी लड़कियों के बजाय आरोपियों के समर्थन में खड़ा हो गया था.

सबका प्रयास यही था कि देश के लोगों को ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के आड़ में हुए इस घिनौनी और बर्बर कांड की कानों कान तक ख़बर ना लगे. उन्हें चिंता थी की दरगाह पर आने वाले हिन्दूओं की संख्या कम हो सकती है.

इस केस पर बाद में टीवी मीडिया पर शो से लेकर किताबें तक लिखी गईं लेकिन एक चीज जो आज तक कहीं नहीं दिखा, वो है- न्याय। अगर उस समय पुलिस ने इस केस में आरोपितों पर शिकंजा कसा होता तो शायद उन्हें फाँसी की सज़ा भी मिल सकती थी।

एक और चीज जानने लायक है कि उस समय पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे और कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी वही हुआ करते थे। पूरे 5 सालों तक उन्होंने सरकार और संगठन को चलाया था। फारूक चिश्ती इंडियन यूथ कॉन्ग्रेस के अजमेर यूनिट का अध्यक्ष था।

नफीस चिश्ती कॉन्ग्रेस की अजमेर यूनिट का उपाध्यक्ष था। अनवर चिश्ती अजमेर में पार्टी का जॉइंट सेक्रेटरी था। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि शक्तिशाली कॉन्ग्रेस पार्टी, उसकी तुष्टिकरण की नीति और आरोपितों का समाजिक व वित्तीय प्रभाव- इन सबने मिल कर न्याय की राह में रोड़े खड़े कर दिए थे।

केस कमजोर कैसे हो गया

कई पीड़िताएँ अपने बयानों से भी मुकर गईं. कइयों की शादी हुई, बच्चे हुए, बच्चों के बच्चे हुए. 30 साल में आखिर क्या नहीं बदल जाता? हमारी समाजिक संरचना को देखते हुए शायद ही ऐसा कहीं होता है कि कोई महिला अपने बेटे और गोद में पोते को रख कर 30 साल पहले ख़ुद पर हुए यूँ जुर्म की लड़ाई लड़ने के लिए अदालतों का चक्कर लगाए.

शायद उन महिलाओं ने भी इस जुल्म को भूत मान कर नियति के आगोश में जाकर अपनी ज़िंदगी को जीना सीख लिया है, और उनमें से अधिकतर अपने हँसते-खेलते परिवारों के बीच 30 साल पुरानी दास्तान को याद भी नहीं करना चाहतीं.

वास्तव में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की कांड की शुरुवात लव जिहाद(Love Jihad) से हुई थी. पूरी तरह से धार्मिक पहचान की आधार पर हिन्दू लड़कियों को जाल में फसाया गया. हिन्दू आश्रमों और साधू संतो पर बेहूदी फिल्मे बनाने वाले जिहादी बॉलीवुड ने भी अजमेर के ख़ादिमों के हाथों हुए इस बलात्कार कांड पर कोई फ़िल्म नही बनायी.

अजमेर दरगाह पर मत्था टेकने जाने वाले हिन्दू ना तो दरगाह के इतिहास के बारे में जानते हैं, ना तो खादिमों के हाथों यहाँ पर हुए देश के सबसे बड़े बलात्कार कांड के बारे में. उनको ये भी आभास नहीं होता की मात्र किसी सूफी की दरगाह नहीं बल्कि यहाँ ना जाने कितनी अबोध हिन्दू लड़कियों की चीख भी दफ़न है.

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