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Some Unknown Dark Facts about Mahatma Gandhi: महात्मा गाँधी के बारे में 8 ऐसे तथ्य जो उनके चरित्र पर काले धब्बे की तरह हैं

Some unknown dark facts about Mahatma Gandhi :गाँधी जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे और भारत की आजादी में उनका भी योगदान था जिसके कारण लोगो में उनका बहुत सम्मान भी था.लेकिन उनकी जिन्दगी की कुछ कड़वी सच्चाई ऐसी भी है की जिसे बहुत कम लोग जानते है और जिसके कारण गाँधी जी के व्यक्तित्व औरबिना किसी भेदभावपूर्ण देशभक्ति पर सवालिया निशान खड़ा करते है और उनका पक्षपाती होना भी दर्शाता हैं

तो आईये जानते हैं कुछ ऐसे ही तथ्यों के बारे में विस्तार से

क्या आप जानते हैं की बंगाल की महिलाओं ने गाँधी जी के विरोध पे मोर्चा खोल दिया था. ये महिलाएं गाँधी जी की स्त्री विरोधी मानसिकता से क्षुब्ध थी. गाँधी जी ने अपनी पत्रिका हरिजन के 21दिसम्बर 1938 के अंक में एक लेख लिखा.

इसमें उन्होंने लिखा, “मुझे लगता है मॉडर्न लड़कियाँ जूलिएट बनाना चाहती है. लेकिन वे ये भी चाहती हैं उनके कम से कम आधा दर्जन रोमियो हों. वो जीवन में रोमांच चाहती है. मॉडर्न लड़कियाँ हवा बरसात और धुप से बचने के लिए नहीं बल्कि लोगों को आकर्षित करने के लिए कपडे पहनती हैं. वो अपने शरीर को रंग लेती हैं. ताकि असाधारण दिख सके. ऐसी महिलाओं के लिए अहिंसा के लिए कोई अर्थ नही हैं. क्यूंकि छेड़खानी से बचने के लिए आत्मरक्षा सीखनी ही पड़ेगी.”

ये सब लेख में इसलिए लिखा की एक बंगाली महिला ने अपने ऊपर हो रहे छेड़खानी से बचने के लिए गाँधी जी से मदद मांगी थी.

Highlights

  • गाँधी जी पक्षपाती थे ?
  • गाँधी जी वंदेमातरम् और हिंदी भाषा के विरोधी कैसे बने
  • गाँधी का मुसलमानों और पाकिस्तान के लिए अधिक प्रेम और हिन्दुओं से नफरत
  • गाँधी जी हिन्दुओं के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते थे
  • गाँधी जी के वजह से भारत टुकड़ों में बंट गया
  • गाँधी जी के काम वासना, ब्रह्मचर्य और अश्लील प्रयोग
  • गाँधी अहिंसा के पुजारी कहे जाते थे फिर भी उन्हें कभी भी Nobel Peace Price क्यों नहीं मिला
  • नाथूराम गोडसे जी द्वारा गाँधी जी का वध का कारण, गोडसे का अंतिम बयान

Some Unknown Dark Facts about Mahatma Gandhi

मोहनदास करमचंद गाँधी जी पक्षपाती थे

गांधी जी के खुले समर्थन के बावजूद नेहरू के पक्ष में कांग्रेस समिति के ज्यादातर वोट सदस्य सरदार वल्लभभाई पटेल मिले थे. नॉमिनेशन के लिए इस पद की आखिरी तारीख 29 अप्रैल 1946 थी. तब तक गांधी जी खुलेआम नेहरू को लेकर अपना इरादा बता दिया था. कांग्रेस कमेटी के 15 सदस्यों के पास प्रेसिडेंट पद पर नॉमिनेट करने की पावर थी.

15 में से 12 सदस्यों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को अध्यक्ष पद के लिए वोट किया. बाकी 3 ने किसी का नाम भी आगे नहीं बढ़ाया. यहां ध्यान देने वाली बात ये थी कि जवाहरलाल नेहरू को वोट किसी भी सदस्य ने नहीं किया.

जेबी कृपलानी ने गांधी जी की इच्छा को समझते हुए थोड़ा प्रयास किया और कुछ वर्किंग कमेटी ने नेहरू का नाम आगे बढ़ाया, हालांकि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक सदस्य ने भी उनके नाम पर मुहर नहीं लगाई थी. यहां पर गांधी ने नेहरू से पूछा, ”प्रदेश कांग्रेस केमटी के किसी सदस्य ने तुम्हें नॉमिनेट नहीं किया है.

सिर्फ कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने किया है.”इस बात पर नेहरू चुप्पी साधे रहे. यह देखकर गांधी जी ने कहा, ”जवाहरलाल दूसरे नंबर का पद कभी नहीं स्वीकार करेगा.” और फिर उन्होंने सरदार पटेल से नॉमिनेशन वापस लेने के लिए कहा. और फिर नेहरु प्रधानमंत्री बने.

जब भारत का बटवारा धर्म के आधार पर हुआ तो पाकिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्र बना उसी तरह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहिए था. भारत को धर्मंशाला क्यों बनाया गया. इसलिए लोगो का मानना हैं की गाँधी जी पक्षपाती थे.

गाँधी जी वंदेमातरम् और हिंदी भाषा के विरोधी कैसे बने

इस तथ्य के बावजूद कि गाँधी जी स्वयं एक हिंदू थे, उन्होंने 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना के अनुरोध पर हमारे राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम् पर प्रतिबंध लगा दिया। यह गीत न केवल बंगाली समुदाय द्वारा पूजित था बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के लिए एक प्रेरणा भी बन गया था। गांधी जी ने 1940 में कांग्रेस का घोषणापत्र पारित किया जिसमें सदस्यों को अपने भाषणों में कहीं भी वंदेमातरम् इस्तेमाल करने से मना किया गया था।

गांधी ने “हिंदुस्तानी” को राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रचारित करने का प्रयास किया। मुसलमानों को खुश करने के लिए, जो हिंदी को भारत की प्रमुख भाषा बनने नहीं देना चाहते थे। जबकि “हिन्दुस्तानी” नाम की कोई भाषा ही नहीं थी. इसके बारे में सिर्फ इतना बताया जाता है कि मुसलमानों द्वारा हिंदी और उर्दू को मिलकर बनाई गयी थी.

गांधी के अनुसार हिन्दुस्तानी हिन्दी और उर्दू का मधुर मेल था। सच तो यह था कि हिन्दुस्तानी केवल एक मिली-जुली भाषा थी-उर्दू द्वारा बनाई गई हिंदी। यह एक ऐसी भाषा थी जिसमें कोई व्याकरण नहीं था और निश्चित रूप से कोई शब्दावली नहीं थी।

इस भाषा में कुछ ऐसे शब्द थे जैसे- उस्ताद वशिष्ठ, बेगम सीता और बादशाह राम. बेशक, यह आधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल नही हुआ। लेकिन इसने मूल हिंदी और संस्कृत को नष्ट करने में कामयाबी हासिल की। अब, भारत में हम जो बोलते हैं वह तीनों भाषाओं की एक गलत खिचड़ी है।

गाँधी का मुसलमानों और पाकिस्तान के लिए अधिक प्रेम और हिन्दुओं से नफरत

गांधी जी को उनके शुरूआती दौर से ही मुस्लिमो के पक्षधर होने की बातें होती हैं और इसके कई सारे उदहारण भी हमे इतिहास में देखने को मिलते हैं .हिन्दू विरोधी उनकी मानसिकता को एक ह्रदय बिदारक घटना से पता चलता हैं जब उनका मुस्लिम प्रेम इतना बढ़ गया था कि उन्होंने मांग की कि दिल्ली में एक मस्जिद पर रुके हुए सारे हिंदू और सिख शरणार्थियों को इसे शांति से खाली कर देना चाहिए. जो बटवारे के बाद पाकिस्तान से आये थे. अन्यथा भारत में रह रहे मुस्लिम उन्हें मौत के घाट उतार देंगे। और इसके लिए गाँधी ने अनशन पर बैठ के उपवास किया.

जबकि पाकिस्तान में मुसलमान हिंदुओं ,सिखों को बेरहमी से मार रहे थे और उनका बलात्कार कर रहे थे, तो उन्होंने उपवास नहीं किया और न ही उन्होंने इस शर्मसार अत्याचार को रोकने के लिए कुछ भी कहा। ट्रेनों में भर-भर के पाकिस्तान से हिन्दुओं ,सिखों की लाशें आ रही थी. इससे उन्हें कोई फर्क नही पड़ा क्योंकि उस समय के लोगो का कहना था की ये रेप की हुई लड़कियाँ व महिलाएं मुस्लिमो की नहीं थी. और सारी लाशें हिन्दुओं और अन्य धर्मो की थी.

केरल के मालाबार में मोपला मुस्लिमों द्वारा हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बारे में उत्तर भारत के लोगों को शायद ही पता हो। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर लिखते हैं कि “मोपला मुस्लिमों के हाथों मालाबार के हिन्दुओं का भयानक अंजाम हुआ। हिन्दुओं का नरसंहार, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों को ध्वस्त करना, महिलाओं और लड़कियों के साथ बलत्कार, गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़े जाने की घटनाएँ हुईं।”

लेकिन गाँधी ने मुस्लिमो का विश्वास जितने के लिए इसे खिलाफत आन्दोलन का नाम दे दिया. लगभग 6 महीनों तक हिन्दुओं का नरसंहार चलता रहा था, जिसमें 10,000 से भी अधिक जानें गईं। ये बर्बरता सिर्फ हिन्दुओं के साथ हुई थी इसलिए गाँधी ने हमेशा की तरह आँख और मुँह पर पट्टी बांध ली.

गाँधी जी हिन्दुओं के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते थे

गाँधी का एक नारा था अहिंसा परमो धर्मः. हिन्दू ग्रंथों से लिया गया है. लेकिन इसको लेकर भी गाँधी हमेशा लोगो के निशाने पर रहे क्योंकी उन्होंने अपने पुरे जीवन काल में इस पूर्ण श्लोक को लोगो को क्यों नही बताया? जो की एक कड़वी सच्चाई भी थी

अपरत्र प्रजा-हितम्, अहिंसा, विनम्रता चापि बोधिताः।

अहिंसा परमो धर्मः, धर्म-हिंसा तथैव च

इति महाभारत-वाक्यम् [Source quote:-its quoted by Chanakya in Artha Shastra with reference from Mahabharata]

“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च” अर्थात अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है..!!।

अगर ये पाठ हिन्दुओं को पढ़ाते तो शायद हिन्दुओं का नरसंहार नही होता. इसी तरह गाँधी एक भजन गाते थे जो की हिन्दुओं की मुख्य भजन को तोड़मड़ोर कर मुस्लिमो को खुश करने के लिए गाते थे.

गाँधी का गलत गया हुआ भजनसही भजन
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
सीताराम सीताराम,
भज प्यारे तू सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान
राम रहीम करीम समान
हम सब है उनकी संतान
सब मिला मांगे यह वरदान
हमारा रहे मानव का ज्ञान
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालग्राम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
– श्री लक्ष्माचर्या [श्री नम: रामायणम् से]

गाँधी जी के वजह से भारत टुकड़ों में बंट गया

भारत की आजादी और भारत का विभाजन 20वीं सदी की अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसे अंग्रेज लेखक ‘कोलिंस’ और फ्रेंच लेखक ‘लेपियरे’ ने अपनी पुस्तक ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में ‘इतिहास का सबसे जटिल तलाक’ कहा है।

भारत के विभाजन के संबंध में अनेक विद्वानों का मत है कि इसे टालने के लिये कांग्रेस एवं गांधी जी ने गंभीर प्रयास नहीं किये। कांग्रेस ने 1909 के पृथक निर्वाचन मंडल प्रणाली का उस प्रकार से विरोध नहीं किया जिस प्रकार से 1905 के बंगाल विभाजन एवं 1932 के दलित पृथक निर्वाचन प्रणाली का किया। कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को ब्रिटिश सत्ता के करीब जाने से रोकने के पर्याप्त प्रयास नहीं किये। नेहरू जैसे नेताओं ने विभाजन को स्वीकार कर लिया क्योंकि सत्ता की प्रतीक्षा उनके लिये असहनीय थी।

नेहरु सिर्फ गाँधी की बात मानते थे अगर सत्ता का लालच नेहरु के मन से निकल देते तो शायद कांग्रेस कमेटी भारत विभाजन के पक्ष में नहीं जाती और बिभाजन संभवतः रुक जाता.

गाँधी जी के काम वासना, ब्रह्मचर्य और अश्लील प्रयोग

गाँधी अपने जीवनी में खुद ही लिखते हैं की मेरे पिता जी मृत्यु के बिल्कुल नजदीक थे और और बगल में वैद्य बैठे हुए थे. लोग उनके आख़िरी सांस गिन रहे थे. और मेरे मन में काम-वासना अपने चरम सीमा पर थी. मैं वहां से उठकर कस्तूरबा के कमरे में चला गया. और जब तक काम वासना का गन्दा खेल खेलकर बाहर आया तब तक पिता जी की मृत्यु हो चुकी थी.

गाँधी ने तब ब्रम्हचर्य अपनाने को सोचा इसके लिए वो अश्लील प्रयोग करने लगे. उनके वह प्रयोग इतने ज़्यादा कामुक और घीनौने थे कि उसकी वजह से लोगो ने उनसे किनारा कर लिया , कई स्वतंत्रता सेनानियों उनका साथ छोड दिया. वो लोग जो कभी गाँधी को अपना आदर्श मानते थे उन्होंने गाँधी का आश्रम छोड दिया ,और उस समय के सम्मानित बड़े बड़े राजनेताओ ने उनसे यह प्रयोग बंद करने के लिए भी कहा लेकिन गाँधी नही माने ने .

गाँधी ने ब्रम्हचर्य के प्रयोग और संयम परखने के बहाने चाचा अमृतलाल तुलसीदास गांधी की पोती और जयसुखलाल की बेटी मनुबेन गांधी के साथ नंगे सोने लगे थे. जो की रिश्ते में गाँधी की बेटी थी.

एक और गाँधी का दोस्त लिखता है. ऐडम्स के मुताबिक जब बंगाल के नोआखली में दंगे हो रहे थे तक गांधी ने मनुबेन को बुलाया और कहा “अगर तुम मेरे साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा क़त्ल कर देते. आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें.” (source- dailyhunt)

गाँधी अहिंसा के पुजारी कहे जाते थे फिर भी उन्हें कभी भी Nobel Peace Price क्यों नहीं मिला

गांधी को 1993, 1938, 1939 और 1947 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. लेकिन उन्हें यह पुरस्कार कभी नहीं मिला। उन्हें 1948 में भी नामित किया गया था, जिस वर्ष उनकी हत्या हुई थी. लेकिन नोबेल समिति ने नहीं चुना क्योंकि समिति ने घोषणा की कि उस वर्ष “कोई उपयुक्त जीवित उम्मीदवार” नहीं था।

1964 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता अमेरिकी नागरिक और नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अपने भाषण में गांधी के काम को स्वीकार किया. और 1989 के नोबेल विजेता, 14 वें दलाई लामा ने अपने पुरस्कार को “मेरे गुरु, महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि।” कहकर स्वीकार किया. 2006 में, नोबेल समिति ने सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त किया कि गांधी को कभी पुरस्कार नहीं दिया गया था

नाथूराम गोडसे द्वारा गाँधी जी का वध का कारण, गोडसे का अंतिम बयान

एक अफवाह फैलाई जाती है की गोली लगने के बाद गाँधी जी मरते समय राम का नाम लिए थे. जो की सरासर झूठ है. कहा जाता है गोडसे का अंतिम बयान और उनकी अपनी लिखी किताब को पब्लिक होने से कांग्रेस ने प्रतिबन्ध लगा दिया था.

जब गोडसे अपने अंतिम बयान दे रहे थे तो वहां पर खड़े सभी लोगों की आँखें नम हो गयी थी. नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान (Last words of Nathuram Godse)-

सम्मान, कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है. मैं कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है।


प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूं। मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाए। वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।


महात्मा गांधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे। गांधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गांधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किए जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी। उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।


मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया। इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है और किसका बलिदान?


जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गांधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है, तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया। मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गांधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।
मैं कहता हूं की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी, जिसकी नीतियों और कार्यों से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी, जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।


मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूंगा, जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि इतिहास के ईमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन मत करना

नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान (Last words of Nathuram Godse)

source: history, todayindya, observenow

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