राजनीति

पुण्यतिथि विशेष पर Mystery of Sanjay Gandhi Death : संजय गाँधी विमान दुर्घटना में मरने से पहले भी 3 बार हो चूका था मारने का प्रयास

Sanjay Gandhi Death: 23 जून 1980 को इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी. अमेठी, उत्तर प्रदेश के विवादास्पद पूर्व सांसद को जीवन भर में तीन बार हत्या के प्रयासों का सामना करना पड़ा। विवादों के बावजूद भी एक बेहद लोकप्रिय, ताकतवर राजनेता थे संजय गाँधी. हालाँकि विमान दुर्घटना में मरने से पहले भी उनको मरने के तीन प्रयास असफल हुए थे.

कौन थे अति-महत्वाकांक्षी नेता संजय गाँधी

1970 का दशक भारतीय राजनीति का एक महत्वपुर्ण दशक माना जाता है, इस दशक के दौरान भारत के राजनीति में एक ऐसे राजनेता का जन्म हुआ था जो अपने छोटी सी आयु में ही वह कारनामा कर गया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. इस राजनेता का नाम था संजय गाँधी. एक अति-महत्वाकांक्षी नेता होने के साथ-साथ वो नेहरु-गाँधी परिवार की राजनीतिक विरासत के अघोषित वारिस भी थे.

कहा जाता था कि वो अगर जिन्दा होते तो इंदिरा गाँधी के बाद कांग्रेस कि बागडोर उन्ही के हाथों में होती पार्टी के सत्ता में होने पर प्रधानमंत्री वही बनते. मगर 34 वर्ष की आयु में ही देश के इस राजनेता की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गयी जो आज तक एक रहस्य हैं.

इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गाँधी का जन्म 14 दिसम्बर 1946 को दिल्ली में हुआ था. बचपन से ही जिद्दी स्वभाव के थे, संजय का मन कभी भी पढाई लिखाई में नहीं लगा उनकी प्रारम्भिक शिक्षा दिल्ली के वेल्हम बॉयज स्कूल और फिर देहरादून के दून स्कूल में हुई. लेकिन उन्होंने स्कूल की पढाई बीच में ही छोड दी. वह कारों व हवाई जहाज के बहुत शौकीन थे. जिसके लिए संजय इंग्लैंड गये और वहां प्रसिद्ध कार निर्माता कंपनी रोल्स-रोयस के साथ तीन वर्षों तक इंटर्नशिप किया.

फिर भारत वापस आकर हवाई जहाज का पायलट बनने की ट्रेनिंग लेकर कमर्शियल पायलट का लाइसेंस हासिल किया. परन्तु संजय गाँधी का अंतिम मुकाम या महत्वाकांक्षा तो किसी और उड़ान को लेकर थी और वह थी राजनीति.

हत्या के प्रयास

दरअसल अप्रैल 2013 में विकीलीक्स ने एक खुलासा करते हुए एक यूएस केबल के हवाले से दावा किया था की संजय गाँधी के मरने से पहले भी 3 बार उनकी हत्या की कोशिश की गई थी. एक बार जब वो उत्तर प्रदेश में पार्टी के दौरे पर थे, उस समय एक हाई-पॉवर्ड राइफल का इस्तेमाल कर के उन्हें जान से मारने की कोशिश की गई थी. सितंबर 1976 में अमेरिकी दूतावास ने एक केबल में बताया था कि यह पूरी तरह से ‘एक सोची-समझी साजिश के तहत’ संजय को एक अज्ञात हमलावर ने निशाना बनाने की कोशिश की.

मगर , ये कोशिश असफल हो गई थी. घटना की तारीख को देख कर साफ पता चलता है कि ये घटना आपातकाल के दौरान हुई थी. गुप्त सूत्र के हवाले से उस यूएस केबल में कहा गया था कि 30-31 अगस्त , 1976 को संजय गाँधी पर तीन गोलियाँ चलायी गयी थीं. हालाँकि इस हमले में वह गंभीर रूप से घायल नहीं हुए और किसी तरह बच कर निकल गए थे. ये उनकी हत्या का तीसरा प्रयास था.

यूएस केबल में ये भी दावा किया गया था कि अगर इस हमले में उनकी मृत्यु हो जाती तो इसका आरोप बाहर से संचालित होने वाले ‘क्रांतिकारी शक्तियों’ पर मढ़ा जाता. विकीलीक्स केबल द्वारा दस्तावेज़ को सार्वजनिक करने से पहले, संजय के जीवन पर इस तरह के किसी भी प्रयास के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

जब जड़ दिया इंदिरा गाँधी को थप्पड़

देश में आपातकाल के लागु होने से पहले एक ऐसी घटना हुई जिससे उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को अंदर तक हिला रख दिया.अमेरिकी पत्रकार लेविस एम साइमंस के अनुसार संजय ने एक डिनर पार्टी में सार्वजनिक तौर पर माँ को कई थप्पड़ मारे. पुलिट्जर पुरस्कार प्राप्त पत्रकार लेविस एम उस समय भारत में “वाशिंगटन पोस्ट” के करेसपोंटेंड थे. लेविस के अनुसार ये खबर उनको एक अनाम खबरी से मिली थी उसके बाद उन्होंने बैंकाक में जाकर इस खबर को छापा वो कहते है की उस समय उन्हें 5 घंटे की नोटिस पे भारत छोड़ने को कहा गया.

इसी घटना के बाद से इंदिरा गाँधी को समझ में आ गया की संजय कितने जिद्दी और महत्वाकांक्षी अड़ियल राजनेता बनेंगे. और इसकी झलक इमरजेंसी के दौरान भी देखने को मिली. एक टाइम ऐसा आया की संजय का कद इंदिरा गाँधी से भी बड़ा माना जाने लगा था.

कहा जाता है की इमरजेंसी में ज्यादातर फैसले संजय के ही मनमुताबिक होते थे, उनकी एक अलग से ही पार्टी लाइन चलती थी. उनका सबसे कड़ा फैसला नसबन्दी वाला माना जाता है जिसमे की लोगो को घरों से पकड़ पकड़ कर नसबन्दी कराई जाती थी. उस समय लगभग 62 लाख लोगो की नसबन्दी कराई गयी थी कुछ लोगों की गलत तरीके से ऑपरेशन करने से मारे भी गये थे.

संजय गाँधी की मौत

संजय गाँधी हवाई जहाज उड़ाने के इतने शौक़ीन थे की कहा जाता है की वो चप्पल पहनकर ही जहाज उड़ाने चले जाते थे. उनके पास कमर्शियल पायलट का लाइसेंस भी था. 23 जून 1980 को भी वह दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट पर दिल्ली फ्लाइंग क्लब के नए जहाज को कैप्टन सुभाष सक्सेना के साथ उड़ा रहे थे. इसी दौरान हवा में कलाबजिया करने के दौरान हवाई जहाज से उनका कन्ट्रोल हट गया और जहाज क्रैश हो गया. जिसमे दोनों की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी.

हालाँकि उनकी मौत को एक हत्या कहा जाता रहा है, आजतक कोई ठोस सबूत नही मिले की जहाज कैसे क्रैश हुआ था. उनकी मौत को इंदिरा गांधी से जोडकर भी देखा जाता है. मृत्यु के समय उनका एक तीन महीने का बच्चा भी था जिसका नाम उन्होंने वरुण गाँधी रखा था. जो इस समय बीजेपी में पीलीभीत से सांसद है.

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