उस समय हिंदुस्तान छोटे देशों में फैल था! उस समय उत्तर भारत में एक शक्तिशाली राजवंश उभर कर आया जिसकी राज्य की सीमा दिल्ली से लेकर अजमेर तक फ़ैली हुई थी!,चौहान के पिता (सोमेश्वर) अज़मेर के शासक थे , उनके नाना जी ने सम्राट वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान को अपनाया और नाना के बाद वे सिंहासन पर बैठे हैं! पृथ्वी राज चौहान ने किसानों को सरकारी सहायता प्रदान किया जिससे किसान अपने खेतो में सोना उगा रहे थे ,एक तरफ वो अपने लोगों की खुशी की सुविधाओं की देखभाल करते थे ,वही अपनी सीमओं को बाहरी शक्तियों से रक्षा करने के लिए सीमओं पे कड़ी निगाह रखते थे ! वो एक पराक्रमी और वीर योध्या थे और विदेशी सैनिकों से भारत के राज्यों की रक्षा करने में सक्षम थे!वो लड़ाई के मैदान में एक बहुत ही सहज ,सतर्क और साहसी सेनापति थे जो कठिनाइयों में भी शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखते थे! उन्होंने दुश्मन के चक्रव्यू तोड़ने में उन्हें महारत हासिल थी! यही कारण है कि सभी भारत के छोटे राजवाडे ने उनकी छत्र छाया में अपने राज्य का शांति से विकास किया था! लेकिन कन्नौज जैसे कई राज्य थे, जो सम्राट दिल्ली की महिमा से इर्ष्या रखते थे! इस बीच, सुल्तान मोहम्मद गौरी, गौर देश का शासक, अपने देश की भूखमरी से निजात पाने के लिए बार बार भारत की समृधि और धन दौलत से आकर्षित होकर अपनी सेना के साथ भारत की सीमाओं पर लूट पाट के इरादे से आता था किसानों के खेतों को रौंदता जलाता हुआ बहुत सा धन दौलत लूट कर गौर देश को लौट जाता था।सन ११९१ में, पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बिच ताराइन का फल युध हुआ जिसमे गोरी की हार हुयी और पृथ्वीराज योद्धा चौहान ने उसे कैद कर दिया था और उसे जेल में डाल दिया था! मोहम्मद गौरी ने सम्राट से क्षमा याचना की प्राणों की भीख माँगी और सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने उसे प्राण दान दे दिए और कैद से उसे मुक्ती देदी ! वह वापिस अपना देश चला गया कभी वापिस न आने की सपथ लेकर !
पुरे भारत मेंवीर प्रतापी सम्राट होने का समाचार फ़ैल गया !कन्नौज के राजा जय चंद (गद्दारी के लिए इतिहास के पन्नों में मशहूर जयचंद ) की एक पुत्री थी नाम था संयुक्ता ! वह बहुत सुन्दर चतुर और होशियार राजकुमारी थी ! उसने पृथ्वीराज चौहान की महानता, वीरता और रण कौशल के बारे में सुना था और वह उन्हें ही अपना पति मान चुकी थी ! राजकुमारी अपने लिए उपयुक्त वर चुन सके, जयचंद ने स्वयंबर का ऐलान किया ! तमाम राज्यों के राजकुमारों को स्वयंबर में सामिल होने का निमंत्रण दिया गया लेकिन वैर वस प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज चौहान को जान बुझ कर निमंत्र्ण नहीं भेजा ! संयुक्ता को जब मालूम हुआ की उसके पिता ने पृथ्वी राज चौहान को निमंत्र्ण नहीं भेजा है तो उसने एक निजी पत्र लिख कर अपने ख़ास विश्वास पात्र सेवक के हाथों पत्र सम्राट को पहुंचा दिया इस अनुरोध के साथ की ‘ वे आएं और अपनी संयुकता को यहाँ से ले जाये ! निश्चित दिन, सही समय पर पृथ्वीराज चौहान स्वयंबर स्थल पर पहुंचे और राजकुमारी संयुक्ता को सबके सामने अपने अश्व पर बिठाकर ले कर चले गये !
वहा खड़े सिपाही और सारे राजकुमार बस देखते रह गए ! वहां उन्होंने विधि विधान से राजकुमारी संयुक्ता के साथ शादी की और संयुक्ता को महारानी का उच्च दर्जा देकर सम्मानित किया ! इधर जयचंद इस घटना से अपने को अपमानित महसूस करने लगा और गुस्से में आकर पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए उसने सीधे गौरी से संपर्क कर दिया, और उसे दिल्ली पर आक्रमण करने का निमंत्रण दे दिया, साथ ही इस लड़ाई में गौरी की सेना को मदद देने का भी बचन दिया ! गौरी इस तरह के एक मौका की प्रतीक्षा कर रहा था और किसी गद्दार की हिंदुस्तान से संपर्क करने की कोशिश कर रहा था उसने एक बड़ी सेना के साथ आक्रमण किया और इस युद्ध में जयचंद की सेना ने भी गोरी का साथ दिया जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान की सेना के आगे बड़ी संख्या में गाय बछिया लगवा दी ! अचानक इतनी सारी गाय बच्छियों को सेना के आगे देखकर सेना का मनोबल कमजोर पड़ गया, गायों को कोई नुकशान न पहुंचे, पृथ्वीराज चौहान के सैनिको ने दुश्मनों पर बाण और गोली चलाना बंद कर दिया ! दूसरी तरफ, गौरी की सेना ने पृथ्वीराज समेत पूरे सैनिकों को घेर कर मारना शुरू कर दिया! इस तरह ११९२ के तराइन के दुसरे युद्ध में चौहान की हर हुयी !
पृथ्वीराज चौहान अपने राज कवि चंद्र्वरदाई के साथ कैद कर लिए गए ! सम्राट पृथ्वीराज चौहान की दोनों आँखें निकलवा दी गयी ! इतिहास कहता है की पृथ्वीराज चौहान लड़ाई में शहीद हो गए थे और महारानी संयुक्ता पति के साथ सती हो गयी थी ! लेकिन एक मत और है की लड़ाई जितने के बाद गोरी ने सबको कुछ न कुछ देकर अपने गुलाम कुतुबद्दीन को दिल्ली की गद्दी पर बिठाकर, चौहान को चंदरबरदाई के साथ बंदी बना कर बहत सारा धन दौलत के साथ अपने राज्य ले गया और वह सभा आयोजित की
चक्र क्या होते हैं – चक्रों की उत्पत्ति
वहां उसे पता चला की पृथ्वीराज चौहान शब्द भेदी बाण चलाने में माहीर हैं ! भारत में अभी तक तीन ही शब्द भेदी बाण चलाने वालों का वर्णन मिलता है !त्रेता युग में चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ जिन्होंने जंगल में शिकार खेलते वक्त सरवण कुमार पर जो अपने अंधे माँ पिता जी के लिए नदी के किनारे पर पानी भर रहा था, उसे मृग समझ कर शब्दभेदी वाण चला कर मार डाला था ! उसके माँ पिता जी ने ही चक्रवर्ती सम्राट को शाप दिया “जा जैसे हम अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़प कर मर रहे हैं वैसे ही तुम भी तड़प तड़प पुत्र वियोग में मरोगे ” ! दूसरा द्वापर में एक भील ने मृग समझ कर शब्दभेदी वाण श्री कृष्ण भगवान के पाँव के छते पर मारा था जिससे भगवान् के शरीर का रक्त बड़ी तेज गति से निकल गया था और बाद में उसी के कारण श्री कृष्ण भगवान बैकुण्ड चले गए थे ! जब भील को पता लगा की उसने गलती से भगवान् श्री कृष्ण के पाँव पर शब्दभेदी वाण मारा है तो उसे बड़ी ग्लानी हुई, उसने भगवान के चरणों में अपना सिर रख कर माफी माँगी ! भगवान ने कहा “नहीं तुम्हारी कोई गलती नहीं है तुमने केवल अपना बदला मुझसे लिया है” ! भील को सुनकर बड़ा अटपटा सा लगा, उसने पूछा, “भगवन एक नाचीज, चिड़िया जैसे निष्पाप प्राणियों को मार कर पेट भरन पोषण करने वाला भील भला साक्षात भगवान् से क्या बदला ले सकता है ?” तब भगवान ने कहा, “त्रेता में मैं राम अवतार के रूप में धरती पर आया था, तुम बाली थे ! तुमने ब्रह्मा जी की अटूट तपस्या की थी! और उन्होंने तुम्हे वरदान दिया था की “मैं तुम्हारी तपस्या से अति प्रशन्न हूँ और तुम्हे वरदान देता हूँ की तुम बहुत शक्तिशाली होगे और अब से जो भी तुम्हारा दुश्मन तुम्हारे साथ आमने सामने होकर लडेगा उसकी आधी शक्ती तुम्हारे पास आ जाएगी ! क्यों की तुमने अपने छोटे भाई सुग्रीब की पत्नी को उससे छीन कर अपनी पत्नी बनाकर बड़ा घोर पाप किया था और बिना अफ़राध के सुग्रीब को अपने राज्य से निकाल बाहर किया था, सुग्रीब मेरा मित्र था, उसकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य था ! सामने से मैं वार कर नहीं सकता था और तुम्हे दंड देना भी आवश्यक था, इसलिए जब तुम दोनों भाई ‘बाली सुग्रीब’ आपस में लड़ रहे थे मैंने छिप कर वाण मारा और तुम्हे यमलोक पहुंचा दिया ! आज उसी का बदला तुमने मुझसे लेकर हिसाब बराबर कर दिया है “
इस कलयूग में पहला शब्द भेदी तीर चलाने वाले थे पृथ्वी राज चौहान ! तब गोरी ने चौहान को मारने से पहले उनकी परीक्षा लेने की सोची ,बहुत जगह चौहानसे उनकी आखिरी इच्छा के बारे में ओउछ्ने का जिक्र है ! मोहम्मद गौरी एक ऊंचे स्थान पर बैठा था ! पृथ्वीराज चौहान और उनके राज कवि चन्द्रवरदाई उनके साथ ही नीचे जमीन पर बैठे हुए थे ! २५ गज ऊँचाई पर घंटा टंगा हुआ था ! उन्हें केवल घंटे की आवाज पर ही निशान लगाना था ! पूरी दूरी की अच्छे से गड़ना करने का बाद हिसाब लगाकर कवि ने सबको सुनाकर अपने सम्राट पृथ्वी राज चौहान को यह जानकारी दी, “चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता उपर सुलतान है मत चुके चौहान” ! चौहान ने पूरी सावधानी और सटीकता के साथ जैसे ही घंटा बजा, बजाय घंटे के सीधे सुलतान को ही निशाना बना दिया ! धनुष से शब्दभेदी बाण छूटा और जा कर सीधे लगा सुलतान मोहम्मद गौरी के सीने पर ! बाण लगते ही गौरी अपने तख़्त से लुढ़कर सीधे नीचे आ गया और वही तुरंत उसकी मृत्यु हो गयी ! उसके मरते ही उसकी सेना में कोहराम मच गया सेना जैसे ही पृथ्वीराज और चन्द्रवरदाई को मारने के लिए उनकी ओर भागे लेकिन उनके आने से पहले ही दोनों ने एक दूसरे के सीने में छुरिया घोंप दी! और इससे पहले की किसी दुश्मन का हाथ उनको पकड़ता दोनों वीरगति को प्राप्त हो गये ! जयहिंद – जय भारत !
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