एलोपैथ की उत्पत्ति लगभग 2400 वर्ष पूर्व ग्रीस में मानी जाती है। आयुर्वेद (Ayurveda) , उपचार के प्राचीन तरीकों में से एक, लगभग 4000 साल पुराना माना जाता है। यह संस्कृत भाषा के अयूर और वेद के दो शब्दों से मिलकर बना है। आयुर का अर्थ है जीवन और वेद का अर्थ है विज्ञान। यानी आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान।
अथर्ववेद में 114 श्लोक हैं जो आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार का उल्लेख करते हैं। अथर्ववेद में बुखार, खांसी, पेट दर्द, दस्त और त्वचा रोग जैसे कई प्रमुख रोगों का वर्णन किया गया है। इसके अलावा ऋग्वेद में भी 67 औषधियों का उल्लेख है, यजुर्वेद में 82 औषधियों का उल्लेख है और सामवेद में आयुर्वेद से संबंधित कुछ मंत्रों का वर्णन है।
जहां एलोपैथी उपचार की आधुनिक पद्धति है, वहीं आयुर्वेद(Ayurveda) उपचार की प्राचीन पद्धति है। दोनों के बीच टकराव की एक बड़ी वजह यह भी है कि आयुर्वेद को धर्म से जोड़कर देखा जाता है। काफी जोरदार लड़ाई चल रही है इस समय आयुर्वेद और एलोपैथ में. आयुर्वेद कह रहा है हम बेहतर है ऐलोपथ कह रहा है हम!
आयुर्वेद (Ayurveda) एंड ऐलोपथ दोनो बेस्ट हैं! दोनों चिकित्सा पध्दति काफी ज्यादा फेमस है! हालाँकि ये अक्सर सवाल उठता है की कौन सा सबसे बेहतर है? या फिर किस बीमारी के लिए कौन सा चिकित्सा फायदेमंद है?
जब हम आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की बात करते हैं तो ये चिकित्सा पध्दति बीमारी से बचाना और उसे जड़ से ख़तम करने के लिए काफी असरदार है वहीँ अगर ऐलोपथी की बात करें तो ये पध्दति जटिल बीमारी, ओपरेशन, सर्जरी में सबसे ज्यादा बेहतर है!
चाहे हम आयुर्वेद की बात करें या एलोपैथ की, दोनों में ही कुछ न कुछ साइड इफ़ेक्ट होते ही हैं! कुछ सच्चाई भी जानना चाहिए! ऐलोपथी में बीमारियों का उपचार होता है बचाओ नही, लेकिन आयुर्वेदिक में बिमारियों के उपचार के साथ बचाव हो होता है! इसलिए एलोपैथी डॉक्टर आज भी आयुर्वेदिक दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं!
आयुर्वेदिक का कहना है की इस धरती पर पाए जाने वाला हर एक जड़, पत्ता, पेड़ की छाल औषधि गुणों से भरपूर है! हमने केवल कुछ का ही इस्तेमाल करना सिखा है बाकि का इस्तेमाल करना अभी तक हमने सिखा ही नही है! अगर हमारी हालत ख़राब है और हम बहोत ही ज्यादा बीमार है तो ऐसे समय में कभी भी आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाना पसंद नही करेंगे! आप उनके पास तभी जायेंगे जब आपके पास ठीक होने का समय होगा! एमरजेंसी के समय सभी लोग एलोपैथी के पास जाते हैं।
चूंकि दोनों दवाओं के व्यापक अनुप्रयोग हैं और चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत प्रमुख साबित हुए हैं, दोनों के अपने फायदे और नुकसान हैं। अनियंत्रित दस्त, खून की कमी, कार्डिएक अरेस्ट, पीलिया, डेंगू, सांस लेने में तकलीफ, अस्थमा आदि जैसी चिकित्सीय आपात स्थितियों के दौरान आयुर्वेदिक उपचार आपके काम का नहीं होगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि कई गंभीर मामलों में केवल इंजेक्शन ही आपको दर्द से जल्दी राहत प्रदान करेंगे। ये इंजेक्शन शुद्ध रासायनिक समाधान हैं जिनके व्यक्तिगत शरीर की प्रतिक्रिया के आधार पर कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
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आयुर्वेदिक उपचार सर्वविदित है क्योंकि यह समस्या के मूल कारण को इंगित करता है और फिर बिना किसी दुष्प्रभाव के इसे पूरी तरह से ठीक करने का लक्ष्य रखता है। हालांकि, किसी विशेष घटक प्रभाव के प्रति व्यक्तिगत शरीर की प्रतिक्रिया के आधार पर इसमें बहुत कम मात्रा में मतभेद हो सकते हैं, और इसलिए जोखिम लिया जा सकता है।
यदि आप गंभीर रूप से घायल हो गए हैं या हाल ही में एक बड़ी सर्जरी हुई है, जो एनेस्थीसिया का असर खत्म होने के बाद वास्तव में दर्दनाक है, तो एलोपैथी भी बहुत मददगार है। दर्द निवारक इंजेक्शन और दवा ही दर्द को कम करने में मदद करती है, नहीं तो कई दिनों तक बेचैनी रहेगी।
यदि समस्या गंभीर है तो एक आयुर्वेदिक चिकित्सक भी सर्जरी की सलाह देता है, लेकिन उसके बाद, लंबे समय तक लाभ के लिए इलाज के बाद आयुर्वेदिक उपचार पर भरोसा करने का सुझाव दिया जाता है।
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